February 24, 2021

हिन्दी व्याकरण

व्याकरण की परिभाषा

व्याकरण- व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा हमे किसी भाषा का शुद्ध बोलना, लिखना एवं समझना आता है।



व्याकरण के प्रकार

(1) वर्ण या अक्षर 
(2) शब्द 
(3)वाक्य

(1) वर्ण या अक्षर:-भाषा की उस छोटी ध्वनि (इकाई )को वर्ण कहते है जिसके टुकड़े नही किये सकते है। 
जैसे -अ, ब, म, क, ल, प आदि।

(2) शब्द:-वर्णो के उस मेल को शब्द कहते है जिसका कुछ अर्थ होता है। 
जैसे- कमल, राकेश, भोजन, पानी, कानपूर आदि।

(3 )वाक्य :-अनेक शब्दों को मिलाकर वाक्य बनता है। ये शब्द मिलकर किसी अर्थ का ज्ञान कराते है।
जैसे- सब घूमने जाते है। 
राजू सिनेमा देखता है।

ध्वनि और लिपि

ध्वनि- ध्वनियाँ मनुष्य और पशु दोनों की होती हैं। कुत्ते का भूँकना और बिल्ली का म्याऊँ-म्याऊँ करना पशुओं के मुँह से निकली ध्वनियाँ हैं। ध्वनि निर्जीव वस्तुओं की भी होती है; जैसे- जल का वेग, वस्तु का कम्पन आदि।

व्याकरण में केवल मनुष्य के मुँह से निकली या उच्चरित ध्वनियों पर विचार किया जाता है। मनुष्यों द्वारा उच्चरित ध्वनियाँ कई प्रकार की होती हैं। एक तो वे, जो मनुष्य के किसी क्रियाविशेष से निकलती हैं; जैसे- चलने की ध्वनि।

दूसरी वे ध्वनियाँ हैं, जो मनुष्य की अनिच्छित क्रियाओं से उत्पत्र होती है; जैसे- खर्राटे लेना या जँभाई लेना। तीसरी वे हैं, जिनका उत्पादन मनुष्य के स्वाभाविक कार्यों द्वारा होता है; जैसे- कराहना। चौथी वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें मनुष्य अपनी इच्छा से अपने मुँह से उच्चरित करता है। इन्हें हम वाणी या आवाज कहते हैं।

पहली तीन प्रकार की ध्वनियाँ निरर्थक हैं। वाणी सार्थक और निरर्थक दोनों हो सकती है। निरर्थक वाणी का प्रयोग सीटी बजाने या निरर्थक गाना गाने में हो सकता है। सार्थक वाणी को भाषा या शैली कहा जाता है। इसके द्वारा हम अपनी इच्छाओं, धारणाओं अथवा अनुभवों को व्यक्त करते हैं। बोली शब्दों से बनती है और शब्द ध्वनियों के संयोग से।

यद्यपि मनुष्य की शरीर-रचना में समानता है, तथापि उनकी बोलियों या भाषाओं में विभित्रता है। इतना ही नहीं, एक भाषा के स्थानीय रूपों में भी अन्तर पाया जाता है। पर पशुओं की बोलियों में इतना अन्तर नहीं पाया जाता। मनुष्य की भाषा की उत्पत्ति मौखिक रूप से हुई। भाषाओं के लिखने की परिपाटी उनके निर्माण के बहुत बाद आरम्भ हुई। यह तब हुआ, जब मनुष्य को अपनी भावनाओं, विचारों और विश्र्वासों को सुरक्षित रखने की प्रबल इच्छा महसूस हुई।

आरम्भ में लिखने के लिए वाक्यसूचक चिह्नों से काम लिया गया और क्रमशः शब्दचिह्न और ध्वनिचिह्न बनने के बाद लिपियों का निर्माण हुआ। चिह्नों में परिवर्तन होते रहे। वर्तमान लिपियाँ चिह्नों के अन्तिम रूप हैं। पर, यह कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए, वर्तमान काल में हिन्दी लिपि में कुछ परिवर्तन करने का प्रयत्न किया जा रहा है। हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है इसके अपने लिपि-चिह्न हैं।

लिपि -शब्द का अर्थ है -'लीपना 'या 'पोतना ' विचारो का लीपना अथवा लिखना ही लिपि कहलाता है।
हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी है। 
अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन 
पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी और 
उर्दू भाषा की लिपि फारसी है।

हिन्दी में लिपि चिह्न

देवनागरी के वर्णो में ग्यारह स्वर और इकतालीस व्यंजन हैं। व्यंजन के साथ स्वर का संयोग होने पर स्वर का जो रूप होता है, उसे मात्रा कहते हैं; जैसे-

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
ा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ
क का कि की कु कू के कै को कौ

देवनागरी लिपि की निम्रांकित विशेषताएँ हैं-

(1) आ (ा), ई (ी), ओ (ो) और औ (ौ) की मात्राएँ व्यंजन के बाद जोड़ी जाती हैं (जैसे- का, की, को, कौ); इ (ि) की मात्रा व्यंजन के पहले, ए (े) और ऐ (ै) की मात्राएँ व्यंजन के ऊपर तथा उ (ु), ऊ (ू),
ऋ (ृ) मात्राएँ नीचे लगायी जाती हैं।

(2) 'र' व्यंजन में 'उ' और 'ऊ' मात्राएँ अन्य व्यंजनों की तरह न लगायी जाकर इस तरह लगायी जाती हैं-
र् +उ =रु । र् +ऊ =रू ।

(3)अनुस्वार (ां) और विसर्ग (:) क्रमशः स्वर के ऊपर या बाद में जोड़े जाते हैं; 
जैसे- अ+ां =अं। क्+अं =कं। अ+:=अः। क्+अः=कः।

(4) स्वरों की मात्राओं तथा अनुस्वार एवं विसर्गसहित एक व्यंजन वर्ण में बारह रूप होते हैं। इन्हें परम्परा के अनुस्वार 'बारहखड़ी' कहते हैं; जैसे-
क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः। 
व्यंजन दो तरह से लिखे जाते हैं- खड़ी पाई के साथ और बिना खड़ी पाई के।

(5) ङ छ ट ठ ड ढ द र बिना खड़ी पाईवाले व्यंजन हैं और शेष व्यंजन (जैसे- क, ख, ग, घ, च इत्यादि) खड़ी पाईवाले व्यंजन हैं। सामान्यतः सभी वर्णो के सिरे पर एक-एक आड़ी रेखा रहती है, जो ध, झ और भ में कुछ तोड़ दी गयी है।

(6) जब दो या दो से अधिक व्यंजनों के बीच कोई स्वर नहीं रहता, तब दोनों के मेल से संयुक्त व्यंजन बन जाते हैं; 
जैसे- क्+त् =क्त । त्+य् =त्य । क्+ल् =क्ल ।

(7) जब एक व्यंजन अपने समान अन्य व्यंजन से मिलता है, तब उसे 'द्वित्व व्यंजन' कहते हैं;
जैसे- क्क (चक्का), त्त (पत्ता), त्र (गत्रा), म्म (सम्मान) आदि।

विशेषण की परिभाषा

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताते है उन्हें विशेषण कहते है। 
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- जो किसी संज्ञा की विशेषता (गुण, धर्म आदि )बताये उसे विशेषण कहते है।
दूसरे शब्दों में- विशेषण एक ऐसा विकारी शब्द है, जो हर हालत में संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है।

जैसे- यह भूरी गाय है, आम खट्टे है।
उपयुक्त वाक्यों में 'भूरी' और 'खट्टे' शब्द गाय और आम (संज्ञा )की विशेषता बता रहे है। इसलिए ये शब्द विशेषण है।

इसका अर्थ यह है कि विशेषणरहित संज्ञा से जिस वस्तु का बोध होता है, विशेषण लगने पर उसका अर्थ सिमित हो जाता है। जैसे- 'घोड़ा', संज्ञा से घोड़ा-जाति के सभी प्राणियों का बोध होता है, पर 'काला घोड़ा' कहने से केवल काले घोड़े का बोध होता है, सभी तरह के घोड़ों का नहीं।

यहाँ 'काला' विशेषण से 'घोड़ा' संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित (सिमित) हो गयी है। कुछ वैयाकरणों ने विशेषण को संज्ञा का एक उपभेद माना है; क्योंकि विशेषण भी वस्तु का परोक्ष नाम है। लेकिन, ऐसा मानना ठीक नहीं; क्योंकि विशेषण का उपयोग संज्ञा के बिना नहीं हो सकता।

विशेष्य- विशेषण शब्द जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, वे विशेष्य कहलाते हैं। 
दूसरे शब्दों में-जिस शब्द की विशेषता प्रकट की जाये, उसे विशेष्य कहते है।
जैसे- उपयुक्त विशेषण के उदाहरणों में 'गाय' और 'आम' विशेष्य है क्योंकि इन्हीं की विशेषता बतायी गयी है।

प्रविशेषण- कभी-कभी विशेषणों के भी विशेषण बोले और लिखे जाते है। जो शब्द विशेषण की विशेषता बताते है, वे प्रविशेषण कहलाते है।

जैसे- यह लड़की बहुत अच्छी है। 
मै पूर्ण स्वस्थ हुँ।
उपर्युक्त वाक्य में 'बहुत' 'पूर्ण' शब्द 'अच्छी' तथा 'स्वस्थ' (विशेषण )की विशेषता बता रहे है, इसलिए ये शब्द प्रविशेषण है।

विशेषण के प्रकार

विशेषण निम्नलिखित पाँच प्रकार होते है -

(1)गुणवाचक विशेषण
 (Adjective of Quality)
(2)संख्यावाचक विशेषण
 (Adjective of Number)
(3)परिमाणवाचक विशेषण
 (Adjective of Quantity)
(4)संकेतवाचक विशेषण 
(Demonstractive Adjective)
(5)व्यक्तिवाचक विशेषण
 (Proper Adjective)

(1)गुणवाचक विशेषण :- वे विशेषण शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम शब्द (विशेष्य) के गुण-दोष, रूप-रंग, आकार, स्वाद, दशा, अवस्था, स्थान आदि की विशेषता प्रकट करते हैं, गुणवाचक विशेषण कहलाते है।

जैसे- गुण- वह एक अच्छा आदमी है।
रंग- काला टोपी, लाल रुमाल।
आकार- उसका चेहरा गोल है।
अवस्था- भूखे पेट भजन नहीं होता।

गुणवाचक विशेषण में विशेष्य के साथ कैसा/कैसी लगाकर प्रश्न करने पर उत्तर प्राप्त किया जाता है, जो विशेषण होता है।

विशेषणों में इनकी संख्या सबसे अधिक है। इनके कुछ मुख्य रूप इस प्रकार हैं। 

गुण- भला, उचित, अच्छा, ईमानदार, सरल, विनम्र, बुद्धिमानी, सच्चा, दानी, न्यायी, सीधा, शान्त आदि।

दोष बुरा, अनुचित, झूठा, क्रूर, कठोर, घमंडी, बेईमान, पापी, दुष्ट आदि।

रूप/रंग- लाल, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला, बैंगनी, सुनहरा, चमकीला, धुँधला, फीका।

आकार- गोल, चौकोर, सुडौल, समान, पीला, सुन्दर, नुकीला, लम्बा, चौड़ा, सीधा, तिरछा, बड़ा, छोटा, चपटा, ऊँचा, मोटा, पतला आदि।

स्वाद- मीठा, कड़वा, नमकीन, तीखा, खट्टा, सुगंधित आदि।

दशा/अवस्था- दुबला, पतला, मोटा, भारी, पिघला, गाढ़ा, गीला, सूखा, घना, गरीब, उद्यमी, पालतू, रोगी, स्वस्थ, कमजोर, हल्का, बूढ़ा आदि।

स्थान- उजाड़, चौरस, भीतरी, बाहरी, उपरी, सतही, पूरबी, पछियाँ, दायाँ, बायाँ, स्थानीय, देशीय, क्षेत्रीय, असमी, पंजाबी, अमेरिकी, भारतीय, विदेशी, ग्रामीण आदि।

काल- नया, पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य, प्राचीन, अगला, पिछला, मौसमी, आगामी, टिकाऊ, नवीन, सायंकालीन, आधुनिक, वार्षिक, मासिक आदि।

स्थिति/दिशा- निचला, ऊपरी, उत्तरी, पूर्वी आदि।

स्पर्श- मुलायम, सख्त, ठंड, गर्म, कोमल, ख़ुरदरा आदि।

द्रष्टव्य- गुणवाचक विशेषणों में 'सा' सादृश्यवाचक पद जोड़कर गुणों को कम भी किया जाता है। जैसे- बड़ा-सा, ऊँची-सी, पीला-सा, छोटी-सी।

(2)संख्यावाचक विशेषण:-वे विशेषण शब्द जो संज्ञा अथवा सर्वनाम (विशेष्य) की संख्या का बोध कराते हैं, संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।

बढ़ईगिरी के निम्नलिखित औजार भी होने चाहिए- पाँच हथौड़े, तीन बसूले, पाँच छोटी हथौड़ियाँ, दो एरन, तीन बम, दस छोटी-बड़ी छेनियाँ, चार रंदे, एक सालनी, चार केतियाँ, चार छोटी-बड़ी बेधनियाँ, चार आरियाँ, पाँच छोटी-बड़ी सँड़ासियाँ, बीस रतल कीलें-छोटी और बड़ी, एक मोंगरा (लकड़ी का हथौड़ा), मोची के औजार।

उपर्युक्त अनुच्छेद में विभिन्न प्रकार के औजारों की संख्या की बात की गई है। पाँच, तीन, दो, दस, चार, एक, बीस आदि संख्यावाची विशेषण हैं। ये विशेषण शब्द हथौड़े, बसूले, हथौड़ियाँ, एरन, बम, छेनियाँ, रंदे, सालनी आदि विशेष्य शब्दों की विशेषता बता रहे हैं।

संख्यावाचक विशेषण के भेद
संख्यावाचक विशेषण के दो भेद होते है-
(i)निश्चित संख्यावाचक विशेषण 
(ii)अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण
(i)निश्चित संख्यावाचक विशेषण :-वे विशेषण शब्द जो विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध कराते हैं,
निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।

मेरी कक्षा में चालीस छात्र हैं। 
कमरे में एक पंखा घूम रहा है। 
डाल पर दो चिड़ियाँ बैठी हैं। 
प्रार्थना-सभा में सौ लोग उपस्थित थे।

इन सभी वाक्यों में विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध हो रहा है; जैसे- कक्षा में कितने छात्र हैं?- चालीस, कमरे में कितने पंखे घूम रहे हैं?- एक, डाल पर कितनी चिड़ियाँ बैठी हैं?- दो तथा प्रार्थना-सभा में कितने लोग उपस्थित थे?- सौ।

(ii)अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण :- वे विशेषण शब्द जो विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध न कराते हों, वे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।
बम के भय से कुछ लोग बेहोश हो गए। 
कक्षा में बहुत कम छात्र उपस्थित थे। 
कुछ फल खाकर ही मेरी भूख मिट गई। 
कुछ देर बाद हम चले जाएँगे।

इन सभी वाक्यों में विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध नहीं हो रहा है? जैसे-कितने लोग दिखे?- कम, कितने लोग बेहोश हो गए?- कुछ,कितने छात्र उपस्थित थे?- कम, कितने फल खाकर भूख मिट गई?-कुछ, कितनी देर बाद हम चले जाएँगे?- कुछ।

प्रयोग के अनुसार निश्चित संख्यावाचक विशेषण के निम्नलिखित प्रकार हैं-
(क) गणनावाचक विशेषण- एक, दो, तीन। 
(ख) क्रमवाचक विशेषण- पहला, दूसरा, तीसरा। 
(ग) आवृत्तिवाचक विशेषण- दूना, तिगुना, चौगुना। 
(घ) समुदायवाचक विशेषण- दोनों, तीनों, चारों। 
(ड़) प्रत्येकबोधक विशेषण- प्रत्येक, हर-एक, दो-दो, सवा-सवा।

गणनावाचक संख्यावाचक विशेषण के भी दो भेद है-
(i) पूर्णांकबोधक विशेषण (ii) अपूर्णांकबोधक विशेषण

(i) पूर्णांकबोधक विशेषण- जैसे- एक, दो, चार, सौ, हजार।
(ii) अपूर्णांकबोधक विशेषण- जैसे- पाव, आध, पौन, सवा। 
पूर्णांकबोधक विशेषण शब्दों में लिखे जाते है या अंकों में। 
बड़ी-बड़ी निश्चित संख्याएँ अंकों में और छोटी-छोटी तथा बड़ी-बड़ी अनिश्चित संख्याएँ शब्दों में लिखनी चाहिए।

(3)परिमाणवाचक विशेषण :-जिन विशेषण शब्दों से किसी वस्तु के माप-तौल संबंधी विशेषता का बोध होता है, वे परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं। 
यह किसी वस्तु की नाप या तौल का बोध कराता है।

जैसे- 'सेर' भर दूध, 'तोला' भर सोना, 'थोड़ा' पानी, 'कुछ' पानी, 'सब' धन, 'और' घी लाओ, 'दो' लीटर दूध, 'बहुत' चीनी इत्यादि।

परिमाणवाचक विशेषण के भेद
परिमाणवाचक विशेषण के दो भेद होते है-
(i) निश्चित परिमाणवाचक 
(ii)अनिश्चित परिमाणवाचक

(i) निश्चित परिमाणवाचक:-जो विशेषण शब्द किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध कराते हैं, वे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है।

जैसे- 'दो सेर' घी, 'दस हाथ' जगह, 'चार गज' मलमल, 'चार किलो' चावल।

(ii)अनिश्चित परिमाणवाचक :-जो विशेषण शब्द किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध नहीं कराते हैं, वे अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है।

जैसे- 'सब' धन, 'कुछ' दूध, 'बहुत' पानी।

(4)संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण :- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की ओर संकेत करते है या जो शब्द सर्वनाम होते हुए भी किसी संज्ञा से पहले आकर उसकी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते है।
दूसरे शब्दों में- ( मैं, तू, वह ) के सिवा अन्य सर्वनाम जब किसी संज्ञा के पहले आते हैं, तब वे 'संकेतवाचक' या 'सार्वनामिक विशेषण' कहलाते हैं।

सरल शब्दों में- जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग संज्ञा के आगे उनके विशेषण के रूप में होता है, उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।

जैसे- वह नौकर नहीं आया; यह घोड़ा अच्छा है।
यहाँ 'नौकर' और 'घोड़ा' संज्ञाओं के पहले विशेषण के रूप में 'वह' और 'यह' सर्वनाम आये हैं। अतः, ये सार्वनामिक विशेषण हैं।

सार्वनामिक विशेषण के भेद
व्युत्पत्ति के अनुसार सार्वनामिक विशेषण के भी दो भेद है-
(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण 
(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण

(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण- जो बिना रूपान्तर के संज्ञा के पहले आता हैं। 
जैसे- 'यह' घर; वह लड़का; 'कोई' नौकर इत्यादि।

(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण- जो मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं। 
जैसे- 'ऐसा' आदमी; 'कैसा' घर; 'जैसा' देश इत्यादि।

(5)व्यक्तिवाचक विशेषण:-जिन विशेषण शब्दों की रचना व्यक्तिवाचक संज्ञा से होती है, उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते है।


जैसे- इलाहाबाद से इलाहाबादी, जयपुर से जयपुरी, बनारस से बनारसी।
उदाहरण- 'इलाहाबादी' अमरूद मीठे होते है।

विशेष्य और विशेषण में सम्बन्ध

विशेषण संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है और जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतायी जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं। 
वाक्य में विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है- कभी विशेषण विशेष्य के पहले आता है और कभी विशेष्य के बाद।

प्रयोग की दृष्टि से विशेषण के दो भेद है-
(1) विशेष्य-विशेषण (2) विधेय-विशेषण

(1) विशेष्य-विशेष- जो विशेषण विशेष्य के पहले आये, वह विशेष्य-विशेष होता है-
जैसे- रमेश 'चंचल' बालक है। सुनीता 'सुशील' लड़की है। 
इन वाक्यों में 'चंचल' और 'सुशील' क्रमशः बालक और लड़की के विशेषण हैं, जो संज्ञाओं (विशेष्य) के पहले आये हैं।

(2) विधेय-विशेषण- जो विशेषण विशेष्य और क्रिया के बीच आये, वहाँ विधेय-विशेषण होता है;
जैसे- मेरा कुत्ता 'काला' हैं। मेरा लड़का 'आलसी' है। इन वाक्यों में 'काला' और 'आलसी' ऐसे विशेषण हैं,
जो क्रमशः 'कुत्ता'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) तथा 'लड़का'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) के बीच आये हैं।

यहाँ दो बातों का ध्यान रखना चाहिए- (क) विशेषण के लिंग, वचन आदि विशेष्य के लिंग, वचन आदि के अनुसार होते हैं। जैसे- अच्छे लड़के पढ़ते हैं। आशा भली लड़की है। राजू गंदा लड़का है।

(ख) यदि एक ही विशेषण के अनेक विशेष्य हों तो विशेषण के लिंग और वचन समीपवाले विशेष्य के लिंग, वचन के अनुसार होंगे; जैसे- नये पुरुष और नारियाँ, नयी धोती और कुरता।

विशेषण शब्दों की रचना
हिंदी भाषा में विशेषण शब्दों की रचना संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्दों के साथ उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगाकर की जाती है।

संज्ञा से विशेषण शब्दों की रचना

संज्ञा विशेषण 
कथन कथित
राधा राधेय
तुंद तुंदिल
गंगा गांगेय
धन धनवान
दीक्षा दीक्षित
नियम नियमित
निषेध निषिद्ध
प्रसंग प्रासंगिक
पर्वत पर्वतीय
प्रदेश प्रादेशिक
प्रकृति प्राकृतिक
बुद्ध बौद्ध
भूमि भौमिक
मृत्यु मर्त्य
मुख मौखिक
रसायन रासायनिक
राजनीति राजनीतिक
लघु लाघव
लोभ लुब्ध/लोभी
वन वन्य
श्रद्धा श्रद्धेय/श्रद्धालु
संसार सांसारिक
सभा सभ्य
उपयोग उपयोगी/उपयुक्त
अग्नि आग्नेय
आदर आदरणीय
अणु आणविक
अर्थ आर्थिक
आशा आशित/आशान्वित/आशावानी
ईश्वर ईश्वरीय
इच्छा ऐच्छिक
इच्छा ऐच्छिक
उदय उदित
उन्नति उन्नत
कर्म कर्मठ/कर्मी/कर्मण्य
क्रोध क्रोधालु, 
क्रोधी गृहस्थ गार्हस्थ्य
गुण गुणवान/गुणी
घर घरेलू
चिंता चिंत्य/चिंतनीय/चिंतित
जल जलीय
जागरण जागरित/जाग्रत
तिरस्कार तिरस्कृत
दया दयालु
दर्शन दार्शनिक
धर्म धार्मिक
कुंती कौंतेय
समर सामरिक
पुरस्कार पुरस्कृत
नगर नागरिक
चयन चयनित
निंदा निंद्य/निंदनीय
निश्र्चय निश्चित
परलोक पारलौकिक
पुरुष पौरुषेय
पृथ्वी पार्थिव
प्रमाण प्रामाणिक
बुद्धि बौद्धिक
भूगोल भौगोलिक
मास मासिक
माता मातृक
राष्ट्र राष्ट्रीय
लोहा लौह
लाभ लब्ध/लभ्य
वायु वायव्य/वायवीय
विवाह वैवाहिक
शरीर शारीरिक
सूर्य सौर/सौर्य
हृदय हार्दिक
क्षेत्र क्षेत्रीय
आदि आदिम
आकर्षण आकृष्ट
आयु आयुष्मान
अंत अंतिम
इतिहास ऐतिहासिक
उत्कर्ष उत्कृष्ट
उपकार उपकृत/उपकारक
उपेक्षा उपेक्षित/उपेक्षणीय
काँटा कँटीला
ग्राम ग्राम्य/ग्रामीण
ग्रहण गृहीत/ग्राह्य
गर्व गर्वीला
घाव घायल
जटा जटिल
जहर जहरीला
तत्त्व तात्त्विक
देव दैविक/दैवी
दिन दैनिक
दर्द दर्दनाक
विनता वैनतेय
रक्त रक्तिम

सर्वनाम से विशेषण शब्दों की रचना

सर्वनाम विशेषण
कोई कोई-सा
जो जैसा
कौन कैसा
वह वैसा
मैं मेरा/मुझ-सा
हम हमारा
तुम तुम्हारा
यह ऐसा

क्रिया से विशेषण शब्दों की रचना

क्रिया विशेषण
भूलना भुलक्क़ड़
खेलना खिलाड़ी
पीना पियक्कड़
लड़ना लड़ाकू
अड़ना अड़ियल
सड़ना सड़ियल
घटना घटित
लूटना लुटेरा
पठ पठित
रक्षा रक्षक
बेचना बिकाऊ
कमाना कमाऊ
उड़ना उड़ाकू
खाना खाऊ
पत् पतित
मिलन मिलनसार

अव्यय से विशेषण शब्दों की रचना

अव्यय विशेषण
ऊपर ऊपरी
पीछे पिछला
नीचे निचला
आगे अगला
भीतर भीतरी
बाहर बाहरी

विशेषण की अवस्थायें या तुलना (Degree of Comparison)
विशेषण(Adjective) की तीन अवस्थायें होती है -
(i)मूलावस्था (Positive Degree)
(ii)उत्तरावस्था (Comparative Degree) 
(iii)उत्तमावस्था (Superlative Degree)

(i)मूलावस्था :-किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के गुण-दोष बताने के लिए जब विशेषणों का प्रयोग किया जाता है, तब वह विशेषण की मूलावस्था कहलाती है।

इस अवस्था में किसी विशेषण के गुण या दोष की तुलना दूसरी वस्तु से नही की जाती।
इसमे विशेषण अन्य किसी विशेषण से तुलित न होकर सीधे व्यक्त होता है।

कमल 'सुंदर' फूल होता है। 
आसमान में 'लाल' पतंग उड़ रही है। 
ऐश्वर्या राय 'खूबसूरत' हैं। 
वह अच्छी 'विद्याथी' है। इसमें कोई तुलना नहीं होती, बल्कि सामान्य विशेषता बताई जाती है।

(ii)उत्तरावस्था :- यह विशेषण का वह रूप होता है, जो दो विशेष्यो की विशेषताओं से तुलना करता है।
इसमें दो व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणियों के गुण-दोष बताते हुए उनकी आपस में तुलना की जाती है।

जैसे- तुम मेरे से 'अधिक सुन्दर' हो। 
वह तुम से 'सबसे अच्छी' लड़की है। 
राम मोहन से अधिक समझदार हैं।

(iii)उत्तमावस्था :- यह विशेषण का वह रूप है जो एक विशेष्य को अन्य सभी की तुलना में बढ़कर बताता है।
इसमें विशेषण द्वारा किसी वस्तु अथवा प्राणी को सबसे अधिक गुणशाली या दोषी बताया जाता है।

जैसे- तुम 'सबसे सुन्दर' हो। 
वह 'सबसे अच्छी' लड़की है।
हमारे कॉंलेज में नरेन्द्र 'सबसे अच्छा' खिलाड़ी है।

अन्य उदाहरण
मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्था
लघु लघुतर लघुतम
अधिक अधिकतर अधिकतम
कोमल कोमलतर कोमलतम
सुन्दर सुन्दरतर सुन्दरतम
उच्च उच्चतर उच्त्तम
प्रिय प्रियतर प्रियतम
निम्र निम्रतर निम्रतम
निकृष्ट निकृष्टतर निकृष्टतम
महत् महत्तर महत्तम

विशेषण की रूप रचना
विशेषणों की रूप-रचना निम्नलिखित अवस्थाओं में मुख्यतः संज्ञा, सर्वनाम और क्रिया में प्रत्यय लगाकर होती है-

विशेषण की रचना पाँच प्रकार के शब्दों से होती है-

(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा से- गाजीपुर से गाजीपुरी, मुरादाबाद से मुरादाबादी, गाँधीवाद से गाँधीवादी।

(2) जातिवाचक संज्ञा से- घर से घरेलू, पहाड़ से पहाड़ी, कागज से कागजी, ग्राम से ग्रामीण, शिक्षक से शिक्षकीय, परिवार से पारिवारिक।

(3) सर्वनाम से- यह से ऐसा (सार्वनामिक विशेषण), यह से इतने (संख्यावाचक विशेषण), यह से इतना (परिमाणवाचक विशेषण), जो से जैसे (प्रकारवाचक विशेषण), जितने (संख्यावाचक विशेषण), जितना (परिमाणवाचक विशेषण), वह से वैसा (सार्वनामिक विशेषण), उतने (संख्यावाचक विशेषण), उतना (परिमाणवाचक विशेषण)।

(4) भाववाचक संज्ञा से- भावना से भावुक, बनावट से बनावटी, एकता से एक, अनुराग से अनुरागी, गरमी से गरम, कृपा से कृपालु इत्यादि।

(5) क्रिया से- चलना से चालू, हँसना से हँसोड़, लड़ना से लड़ाकू, उड़ना से उड़छू, खेलना से खिलाड़ी, भागना से भगोड़ा, समझना से समझदार, पठ से पठित, कमाना से कमाऊ इत्यादि।

कुछ शब्द स्वंय विशेषण होते है और कुछ प्रत्यय लगाकर बनते है। जैसे -

(1)'ई' प्रत्यय से = जापान-जापानी, गुण-गुणी, स्वदेशी, धनी, पापी। 
(2) 'ईय' प्रत्यय से = जाति-जातीय, भारत-भारतीय, स्वर्गीय, राष्ट्रीय ।
(3)'इक' प्रत्यय से = सप्ताह-साप्ताहिक, वर्ष-वार्षिक, नागरिक, सामाजिक।
(4)'इन' प्रत्यय से = कुल-कुलीन, नमक-नमकीन, प्राचीन।
(5)'मान' प्रत्यय से = गति-गतिमान, श्री-श्रीमान।
(6)'आलु'प्रत्यय से = कृपा -कृपालु, दया-दयालु ।
(7)'वान' प्रत्यय से = बल-बलवान, धन-धनवान। 
(8)'इत' प्रत्यय से = नियम-नियमित, अपमान-अपमानित, आश्रित, चिन्तित । 
(9)'ईला' प्रत्यय से = चमक-चमकीला, हठ-हठीला, फुर्ती-फुर्तीला।

विशेषण का पद-परिचय
विशेषण के पद-परिचय में संज्ञा और सर्वनाम की तरह लिंग, वचन, कारक और विशेष्य बताना चाहिए।

उदाहरण- यह तुम्हें बापू के अमूल्य गुणों की थोड़ी-बहुत जानकारी अवश्य करायेगा। 
इस वाक्य में अमूल्य और थोड़ी-बहुत विशेषण हैं। इसका पद-परिचय इस प्रकार होगा-

अमूल्य- विशेषण, गुणवाचक, पुंलिंग, बहुवचन, अन्यपुरुष, सम्बन्धवाचक, 'गुणों' इसका विशेष्य। 
थोड़ी-बहुत- विशेषण, अनिश्र्चित संख्यावाचक, स्त्रीलिंग, कर्मवाचक, 'जानकारी' इसका विशेष्य।

   वर्ण विच्छेद

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