आदि शक्ति मां दुर्गा के आस्था का प्रतीक पवित्र नवरात्रि का पर्व हर वर्ष शारदीय व चैत्र मास दो बार मनाया जाता है। आदि शक्ति मां दुर्गा के आस्था का प्रतीक पवित्र नवरात्रि का पर्व हर वर्ष शारदीय व चैत्र मास दो बार मनाया जाता है। देवी भक्त इन दिनों नौ दिन तक श्रद्धा पूर्वक व्रत रखने का संकल्प लेते हैं और मिट्टी के बेदी पर जौ बोकर उसी पर पूजा का कलश व मां दुर्गा एवं काली की प्रतिमा स्थापित करके पूजन के साथ साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। नवरात्रि का व्रत रखने वाले भक्त नौ दिनों तक भोजन न करके सिर्फ फल खाकर गुजारा करते हैं। इतना ही नहीं इन पवित्र दिनों में व्यक्ति को ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत करना अनिवार्य है। इन दिनों दुर्गा भक्त पाठ पूजा के अतिरिक्त दुर्गा मंदिरों में जाकर ब्राह्मणों को भारी दान दक्षिणा भी अर्पित करते हैं।
नवरात्रि उत्पत्ति की हिन्दू मान्यताएं
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में सुरथ नाम के एक राजा थे, जो इन्साफ पसंद इंसान थे। उनके मंत्री मंडल में ब्राह्मणों का बाहुल्य था। राज गद्दी की चाह में मंत्रियों ने राजा के दुश्मनो से मिलकर राज पर आक्रमण कर दिया। राजा की हार हुई और वो जान बचाकर जंगल में संन्यासी बनकर रहने लगे। उसी जंगल में एक समाधि नाम का वैश्य रहता था जिसे उसके ही पुत्रों व पत्नी एवं भाइयों द्वारा धन के लालच में घर से निकाल दिया गया था। दोनों ही परिचय के बाद महर्षि मेधा के आश्रम में पहुंचे जहां महर्षि के पूछने पर सारी बात बताते हुए दोनों ने कहा कि इतना कुछ होने के बावजूद हमारा मोह सगे सम्बन्धियों के प्रति ख़त्म क्यों नहीं हो रहा है। महर्षि ने सारा वृत्तांत सुनने के बाद कहा कि मन शक्तियों के अधीन होता है, जिसके श्रोत का नाम आदिशक्ति भगवती है। इनके विद्या व अविद्या दो रूप हैं। यह सुनकर सुरथि ने कहा कि ये आदि शक्ति भगवती कौन हैं हमें विस्तार से बताएं। तब महर्षि ने कहा कि हे राजन ये नित्यस्वरूपा व विश्वव्यापिनी है। उसके उत्पति के कई कारण हैं।
उन्होंने कहा कि कल्पांत के समय जब महाप्रलय हुआ तो उस समय विष्णु जी क्षीर सागर में नाग सैया पर सो रहे थे तभी उनके कानो से दैत्य असुर मधु व कैटभ उत्पन्न हुए। कहा जाता है कि धरती पर पांव रखते ही वो दोनों विष्णु के नाभि कमल से उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा को मारने के लिये दौड़ पड़े। तब ब्रह्मा ने विष्णु की मदद मांगी।
पांच हजार वर्षों तक चलता रहा मधु कैटभ व विष्णु का महायुद्ध
कहा जाता है कि ब्रह्मा को वीर दैत्यों से बचाने के विष्णु सहित इंद्र, वरुण,यम, कुबेर, चंद्र, सूर्य,पवन आदि युद्ध में उतरे मगर कुछ ही दिनों में सब भाग खड़े हुए, बावजूद इसके विष्णु ने मधु कैटभ से लगातार पांच हजार वर्षो तक महायुद्ध किया। जिसे देख विष्णु पत्नी लक्ष्मी ने मोहनी रूप धारण कर मधु कैटभ को अपनी और आकर्षित करते हुए दैत्यों को वरदान देने हेतु बाध्य किया। मधु कैटभ को विष्णु पर रहम आ गया और उन दैत्यों ने विष्णु की बहादुरी पर खुश होते हुए उन्हें वर मांगने के लिए कहा तो विष्णु ने दैत्यों को कहा कि अगर वरदान ही देना है तो हमें ऐसा वर दो कि तुम्हारी मौत हमारे ही हाथ से हो। उन ने वचन की लाज रखते हुए एवमस्त कहते हुए अपने दानशीलता का परिचय दिया। माना जाता है कि मधु कैटभ को मारने के लिए आदिस्वरूपा माँ दुर्गा ने जब प्रकट होकर अपनी शक्तियों का समावेश किया तब जाकर मधु कैटभ का अंत हुआ। इसी प्रकार आदि शक्ति भवानी ने मां कालिका का रूप लेकर दैत्य शुम्भ, निशुम्भ, रक्तबीज, चंड, मुंड, धूम्र लोचन, महिषासुर आदि का भी वध किया।
नवरात्रि का वर्तमान स्वरुप
नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है जो उनके विभिन्न गुणों के प्रतीक हैं। उनका पहला रूप शैलपुत्री का है जिसमे वह राजा हिमालय की पुत्री हैं जिनका पूर्व जन्म दक्ष की पुत्री सती व भवानी के रूप में हुआ था, जो भगवान् शिव की पत्नी थी जो अपमान का घूंट पीने का बाद अग्नि कुण्ड में कूद कर खुद को समाप्त कर लिया था। जो दुसरे जन्म में पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई। देवी दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारणी, तीसरा चंद्र घंटा, चैथा कुष्मांडा, पांचवा स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी, और नवां सिद्धिदात्री का है। माँ दुर्गा का सातवां रूप कालरात्रि काफी विकराल है इसी रूप में ही उन्होंने असुरों का दमन बड़े पैमाने पर किया था।
दुर्गा मंदिरों में उमड़ता है श्रद्धा का सैलाब
माँ दुर्गा में अपनी आस्था रखने वाले भक्तगण नव रात्रि के नवों दिन दुर्गा मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं, इन दिनों मंदिरो में माँ भक्तों के श्रद्धा का सैलाब उमड़ आता है। जहाँ जय माता दी के उदघोषों से सम्पूर्ण वातावरण दुर्गामयी हो कर भक्तों को भक्ति सागर में डूबने के लिए विवश कर देता है।